नई दिल्ली, 14 अगस्त 2024: जिंक ऑक्साइड नैनोपार्टिकल्स के एक नए अध्ययन ने मधुमेह से जुड़ी किडनी समस्याओं के प्रबंधन में एक महत्वपूर्ण चिकित्सीय दृष्टिकोण की संभावना को उजागर किया है। पुणे के अघारकर अनुसंधान संस्थान के अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए इस अध्ययन ने डायबिटिक नेफ्रोपैथी के इलाज में जिंक ऑक्साइड नैनोपार्टिकल्स की क्षमता को साबित किया है। यह खोज लाखों मधुमेह रोगियों के लिए एक नई उम्मीद लेकर आई है।
डायबिटिक नेफ्रोपैथी, जो लंबे समय तक मधुमेह के कारण होने वाली एक गंभीर और आम जटिलता है, टाइप-I मधुमेह के 20-50 प्रतिशत रोगियों को प्रभावित करती है। यह स्थिति गुर्दे के कार्य में क्रमिक गिरावट के कारण होती है, जो अक्सर अंतिम चरण की गुर्दे की बीमारी (ईएसआरडी) में परिणत होती है। इस संदर्भ में, जिंक ऑक्साइड नैनोपार्टिकल्स का अध्ययन एक महत्वपूर्ण सफलता मानी जा रही है।
अध्ययन के अनुसार, जिंक ऑक्साइड नैनोपार्टिकल्स ने डायबिटिक नेफ्रोपैथी से पीड़ित चूहों में गुर्दे के कार्य में सुधार किया। इसने उच्च रक्त शर्करा के कारण होने वाली सूजन और कोशिका मृत्य को भी रोका, जिससे गुर्दे की क्षति को कम किया जा सका। इसके अलावा, नैनोपार्टिकल्स ने उन प्रोटीनों की भी सुरक्षा की जो गुर्दे के कार्य के लिए आवश्यक हैं।
जिंक ऑक्साइड नैनोपार्टिकल्स की यह क्षमता, डायबिटिक नेफ्रोपैथी जैसी जटिलताओं के इलाज के लिए एक पूरक चिकित्सीय एजेंट के रूप में महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। जर्नल लाइफ साइंसेज में प्रकाशित इस अध्ययन ने जिंक ऑक्साइड नैनोपार्टिकल्स के संभावित तंत्र का भी प्रस्ताव दिया है, जिससे यह डायबिटिक नेफ्रोपैथी को रोकने के लिए एक प्रभावी तरीका साबित हो सकता है।
हालांकि इन निष्कर्षों को नैदानिक कार्य के रूप में परिणत करने के लिए आगे के अनुसंधान की आवश्यकता होगी, लेकिन यह अध्ययन मधुमेह से प्रभावित लोगों के लिए जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। चिकित्सा समुदाय और मरीज दोनों ही इस नई खोज के प्रभाव को लेकर आशान्वित हैं, जो भविष्य में डायबिटिक नेफ्रोपैथी के इलाज में एक महत्वपूर्ण उपकरण बन सकती है।