नई दिल्ली – भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और पैनेसिया बायोटेक ने भारत की पहली स्वदेशी डेंगू वैक्सीन के लिए चरण-3 नैदानिक परीक्षण की शुरुआत की है। यह परीक्षण पैनेसिया बायोटेक द्वारा विकसित भारत के स्वदेशी टेट्रावैलेंट डेंगू वैक्सीन, डेंगीऑल के प्रभाव का मूल्यांकन करेगा। पहले प्रतिभागी को आज पंडित भगवत दयाल शर्मा पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (पीजीआईएमएस), रोहतक में टीका लगाया गया।
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री श्री जगत प्रकाश नड्डा ने इस ऐतिहासिक पहल पर टिप्पणी करते हुए कहा, “भारत की पहली स्वदेशी डेंगू वैक्सीन के लिए इस चरण-तीन के नैदानिक परीक्षण की शुरुआत हमारे डेंगू के खिलाफ संघर्ष में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह न केवल हमारी इस बीमारी से बचाने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, बल्कि भारत की वैक्सीन अनुसंधान और विकास क्षमताओं को भी उजागर करता है।”
भारत में डेंगू के खिलाफ कोई लाइसेंस प्राप्त एंटीवायरल उपचार या वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। डेंगू वायरस के सभी चार सीरोटाइप के लिए एक प्रभावी वैक्सीन का विकास जटिल है। इस टेट्रावैलेंट डेंगू वैक्सीन स्ट्रेन (टीवी003/टीवी005) को मूल रूप से नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (एनआईएच), अमरीका द्वारा विकसित किया गया था, और इसने प्रीक्लिनिकल और क्लिनिकल परीक्षणों में आशाजनक परिणाम प्रदर्शित किए हैं।
पैनेसिया बायोटेक, भारत की तीन कंपनियों में से एक है, जिसे इस स्ट्रेन के विकास का अधिकार मिला है। कंपनी ने वैक्सीन के फॉर्मूलेशन पर बड़े पैमाने पर काम किया है और इसके लिए एक पेटेंट भी प्राप्त किया है। इसके पूर्ववर्ती चरण-1 और 2 के क्लिनिकल परीक्षण 2018-19 में सफलतापूर्वक पूरे हुए थे।
आईसीएमआर के सहयोग से, पैनेसिया बायोटेक इस चरण-3 परीक्षण को भारत के 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 19 स्थानों पर संचालित करेगा, जिसमें 10,335 से अधिक स्वस्थ वयस्क प्रतिभागी शामिल होंगे। इस परीक्षण को पैनेसिया बायोटेक के आंशिक समर्थन के साथ मुख्य रूप से आईसीएमआर द्वारा वित्तपोषित किया जा रहा है, और प्रतिभागियों के साथ दो साल तक अनुवर्ती कार्रवाई की जाएगी।
डेंगू, भारत में एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता है और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, पिछले दो दशकों में डेंगू के मामलों में वृद्धि देखी गई है। भारत में, लगभग 75-80 प्रतिशत संक्रमण लक्षणहीन होते हैं, लेकिन ये व्यक्ति संक्रमण फैला सकते हैं। गंभीर मामलों में बच्चों को अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु दर का अधिक जोखिम होता है, और वयस्कों में डेंगू रक्तस्रावी बुखार और डेंगू शॉक सिंड्रोम जैसी गंभीर स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है।
यह नई वैक्सीन पहल भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करने और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।